क्या वाकई दिमाग के 90% हिस्से का हम इस्तेमाल नहीं करते? जानिए सच्चाई!

“इंसान अपने दिमाग का केवल 10% ही इस्तेमाल करता है” – आपने ये बात कहीं न कहीं ज़रूर सुनी होगी। ये दावा फिल्मों, मोटिवेशनल स्पीच और सोशल मीडिया पोस्ट्स में बार-बार दोहराया गया है। लेकिन क्या इसमें सच्चाई है? आइए इस लेख में वैज्ञानिक तथ्यों के साथ इस लोकप्रिय मिथक की हकीकत को समझते हैं।

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यह विचार आया कहां से?

10% दिमाग इस्तेमाल करने का विचार पहली बार 1890 के दशक में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स द्वारा दिए गए एक बयान से जुड़ा है। उन्होंने कहा था कि “हम अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं का एक छोटा हिस्सा ही उपयोग में लाते हैं।” लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि हम सिर्फ 10% दिमाग इस्तेमाल करते हैं।

20वीं सदी के शुरुआती वर्षों में कुछ लेखों और लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकों ने इस विचार को गलत तरीके से प्रस्तुत किया, और तब से ये मिथक लोगों के बीच प्रचलित हो गया।

विज्ञान क्या कहता है?

आधुनिक न्यूरोसाइंस ने स्पष्ट कर दिया है कि हम अपने पूरे दिमाग का उपयोग करते हैं – हाँ, हर हिस्से का!

ब्रेन स्कैनिंग तकनीकें, जैसे fMRI और PET स्कैन, दिखाती हैं कि जब हम सोचते हैं, चलते हैं, खाते हैं, या यहां तक कि सोते हैं, तब भी हमारा दिमाग सक्रिय रहता है।

दिमाग में ऐसा कोई हिस्सा नहीं है जो पूरी तरह बेकार या निष्क्रिय हो।

अगर 90% दिमाग अनुपयोगी होता, तो मस्तिष्क को नुकसान या चोटें इतनी घातक नहीं होतीं जितनी कि वे होती हैं।

क्यों है ये मिथक इतना लोकप्रिय?

1. आत्म-सुधार की प्रेरणा: ये विचार सुनने में अच्छा लगता है – कि हमारे अंदर असीम संभावनाएं छिपी हैं।

2. मीडिया का प्रभाव: फिल्मों ने इस मिथक को और फैलाया है। उदाहरण के तौर पर, हॉलीवुड फिल्म Lucy (2014) में दिखाया गया है कि जब इंसान 100% दिमाग इस्तेमाल करने लगे, तो वो सुपरह्यूमन बन जाता है।

3. कम समझ: ब्रेन एक जटिल अंग है, और उसकी पूरी कार्यप्रणाली को न समझ पाने के कारण ऐसे विचार आसानी से फैल जाते हैं।

असल सच्चाई क्या है – दिमाग के इस्तेमाल को लेकर?

तो अब सवाल उठता है कि अगर हम दिमाग के हर हिस्से का इस्तेमाल करते हैं, तो फिर यह 10% वाला भ्रम कहां से आया? दरअसल, यह केवल अधूरी जानकारी और बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई बातों का नतीजा है। विज्ञान यह साफ कर चुका है कि हमारा दिमाग हर वक्त लगभग पूरी तरह सक्रिय रहता है, लेकिन हर हिस्से का काम अलग-अलग होता है। कोई हिस्सा सोचने में काम आता है, कोई यादें संजोने में, और कोई भावनाओं को समझने में।

यह कहना कि सिर्फ 10% दिमाग काम करता है, उतना ही गलत है जितना यह मान लेना कि हम अपने फेफड़ों का सिर्फ 10% इस्तेमाल करते हैं। हकीकत में, हर इंसान अपने दिमाग की पूरी क्षमता का उपयोग करता है — बस अलग-अलग स्थितियों और ज़रूरतों के अनुसार।

इसलिए अगली बार जब कोई कहे कि तुम अपने दिमाग का सिर्फ 10% यूज़ करते हो — तो मुस्कुराओ और सच्चाई बताओ। क्योंकि ज्ञान ही सबसे बड़ी ताकत है।

हमारे दिमाग का 90% हिस्सा बेकार नहीं है – यह एक पुराना, लेकिन झूठा मिथक है। विज्ञान ने बार-बार साबित किया है कि इंसान अपने पूरे मस्तिष्क का उपयोग करता है, भले ही सभी हिस्से एक साथ सक्रिय न हों।

इसलिए अगली बार जब कोई कहे कि इंसान अपने दिमाग का सिर्फ 10% इस्तेमाल करता है, तो उसे ज़रूर ये तथ्य बताइए। असली शक्ति मिथकों में नहीं, सच्चाई में होती है!

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