99% लोग रोज करते हैं ये गलती और फिर कहते हैं — ‘किस्मत खराब है’

जब ज़िंदगी में कुछ गलत होता है, ज़्यादातर लोग यही कहते हैं — “मेरी किस्मत खराब है।” लेकिन क्या हमेशा किस्मत ही जिम्मेदार होती है? या फिर हम रोज़ एक ऐसी चूक कर रहे हैं जो खुद हमें पीछे धकेल रही है?

असल में, बहुत से लोग एक आदत को दोहराते हैं — और वो है खुद की जिम्मेदारी से बचना।

हर दिन जब हम किसी नतीजे से खुश नहीं होते, तो सबसे आसान होता है किसी और को जिम्मेदार ठहरा देना। कभी हालात, कभी सिस्टम, कभी लोग — और अगर कुछ न मिले, तो किस्मत।

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क्या आपने कभी सोचा है?

  • “मैंने सब किया, फिर भी नतीजा नहीं मिला”
  • “मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?”
  • “मुझे मौका ही नहीं मिला”

ये सारी बातें हमें खुद से दूर कर देती हैं। हम सोचते हैं कि जो भी हुआ, हमारे हाथ में नहीं था। लेकिन यही सोच हमें रोकती है।

असल गलती क्या है?

हम अपनी गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं। जब आप खुद की कमियों को नहीं पहचानते, तो उन्हें सुधार भी नहीं पाते। और हर बार जब आप किस्मत को दोष देते हैं, आप अपने दिमाग को हार मानने की आदत सिखा रहे होते हैं।

दूसरे लोग अलग क्यों होते हैं?

कुछ लोग बिल्कुल उन्हीं हालात में होते हैं — लेकिन आगे बढ़ जाते हैं। क्यों? क्योंकि वो हालात का सामना करते हैं। वो अपनी गलतियों से सीखते हैं। जब गिरते हैं, तो कहते हैं “मेरी चूक थी, अब इसे ठीक करूंगा।”

बदलाव कैसे लाएं?

  1. हर दिन खुद से पूछिए: आज क्या ऐसा हुआ जिसे मैं बेहतर कर सकता था?
  2. जवाब से मत भागिए: अगर गलती आपकी थी, तो मानिए। वही पहली सीढ़ी है सुधार की।
  3. किस्मत को बहाना न बनाइए: जब आप कोशिश नहीं करते, तो नतीजे की जिम्मेदारी किस्मत पर नहीं डाल सकते।
  4. छोटे एक्शन लीजिए: सोच बदलनी है तो आदतों से शुरुआत करें।

क्या किस्मत कुछ नहीं होती?

किस्मत को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। लेकिन वो कब साथ देती है? जब आप तैयार हों। जब आपने अपनी तरफ से कोई कसर न छोड़ी हो। जब आप खुद से कह सकें — “मैंने सब किया, अब जो होगा देखा जाएगा।”

अतिरिक्त विचार:

हर इंसान की ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आते हैं। लेकिन जो लोग इन उतार-चढ़ावों को स्वीकार करते हैं, और अपने भीतर झांककर सच्चे कारणों को पहचानते हैं — वही असल में आगे बढ़ते हैं। सफलता का कोई जादू नहीं होता, और न ही कोई शॉर्टकट। यह एक सोच है — एक नजरिया जो कहता है कि आप हालात के शिकार नहीं हैं, बल्कि आप उनके निर्माता हो सकते हैं। अगर आप रोज़ खुद से यह सवाल पूछें कि “मैं और बेहतर कैसे बन सकता हूं?”, तो यकीन मानिए, आपकी ‘किस्मत’ भी बदलने लगेगी।

99% लोग जो गलती करते हैं, वो है जिम्मेदारी से भागना। जब तक आप खुद की कमियों को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। अगली बार जब कुछ गलत हो, तो रुकिए। सोचिए। और खुद से कहिए — “मैंने क्या किया, और अब मुझे क्या करना है।”

किस्मत पर भरोसा रखें, लेकिन अपनी मेहनत और सोच पर ज़्यादा। यही फर्क लाएगा।

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